अल्मोड़ा जिले के प्रमुख स्थल
अल्मोड़ा नगर
(8वीं और 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व) काल से ही अल्मोड़ा क्षेत्र में मानव बस्तियों के होने के प्रमाण मिलते हैं।
कत्युरी राजवंश
कत्युरी राजवंश ने अल्मोड़ा क्षेत्र में अपने राज्य की स्थापना की, जिसका ज्ञान अल्मोड़ा सिक्को से प्राप्त होता हैं ।
अल्मोड़ा नगर के बनने से पहले अल्मोड़ा का क्षेत्र कत्युरी राजा बैचाल्देव के अधीन था
जिसे राजा ने श्री चंद तिवारी नामक एक गुजराती ब्राह्मण को दान किया।
अल्मोड़ा, कुमाऊँ राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी।
कुणिंद
कत्यूरी
अल्मोड़ा नगर एवं चंद वंश
अल्मोड़ा नगर की स्थापना
अल्मोड़ा नगर पर चंद वंश का प्रभाव
राजाओं की घाटी
अंग्रेजी सेना की छावनी
अल्मोड़ा के हवलबाग में अंग्रेजी सेना की छावनी थी ।
1839 के बाद अल्मोड़ा में सेना की छावनी स्थानांतरित किया गया और सैनिकों की तैनाती पिथौरागढ़ और लोहाघाट जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में कर दी गई।
1846 में लालमांडी के किले में पुनः इस सैन्य छावनी को स्थानांतरित कर दिया गया, आजादी के बाद रानीखेत छावनी बनने तक सेना यही तैनात रही।
Note– वर्तमान में यही सेना कुमाऊं रेजिमेंट के नाम से जानी जाती है।
1804 में श्री रामसे ने अल्मोड़ा के हवलबाग मे कुष्ठ रोगियों लिये सर्वप्रथम इलाज की व्यवस्था की थी।
1837 में अल्मोड़ा के पहाड़ी क्षेत्र में बना पुलिस स्टेशन पहाड़ी का सबसे पुराना पुलिस स्टेशन है।
(अनुमान अनुसार कहा गया है कि 1822-23 में यहां जेल की स्थापना हुई थी। )
1844 में बना मिशन स्कूल अल्मोड़ा में अंग्रेजी शिक्षा शुरू करने वाला पहला स्कूल था।
1871 में इस मिशन स्कूल का नाम बदलकर रामसे कॉलेज हो गया
1864 में अल्मोड़ा नगर में नगर पालिका का गठन हुआ।
पंडित बुद्बिबल्लभ पंत
पंडित बुद्बिबल्लभ पंत जी को अल्मोड़ा में सर्वप्रथम प्रेस खोलने और अख़बार प्रकाशित करने का श्रेय दिया जाता है।
1871 में बुद्बिबल्लभ पंत जी ने अल्मोड़ा में एक क्लब खोला जिसे बहस क्लब नाम से जाना जाता था
बाद में श्री बुद्बिबल्लभ पंत जी ने अल्मोड़ा जिले से एक साप्ताहिक पत्रिका अल्मोड़ा अखबार भी प्रकाशित किया।
इसी क्रम में बाबू देवीदस जी ने 1893-94 में ‘कुमाऊं प्रिंटिंग प्रेस’ नाम से एक प्रिंटिंग प्रेस खोली
इस प्रेस से ‘कुर्मांचल समाचार’ नामक साप्ताहिक प्रकाशित किया गया।
1901 में एक अस्पताल तथा 1927 में एक महिला अस्पताल अल्मोड़ा में स्थापित किया गया था।
1932 में एसएस बॉय स्काउट एसोसिएशन के निर्मलवन ग्रीष्मकालीन शिविर को शीतलाखेत में खोला गया।
पहली मोटर लॉरी भी 1920 में अल्मोड़ा पहुंची थी।
अल्मोड़ा से ही लोहाघाट, पिथौरागढ़, मुक्तेश्वर और रानीखेत तक टेलीग्राम भेजा जा सकता था
रानीखेत के जरिए अन्य क्षेत्रों के लिए टेलीफ़ोनिक कॉल भी किए जाते थे|
द्वाराहाट
1. द्वाराहाट अल्मोड़ा जिले का एक पुराना शहर है ,द्वाराहाट का पुराना नाम लखनपुर है जो सुंदर मंदिरों और लुभावनी वादियों से भरा है
2. द्वाराहाट को “मंदिरो की नगरी” भी कहा जाता है |
3. इसके साथ ही द्वाराहाट को “हिमालय की द्वारिका” और “कुमाऊँ का खजुराहो” के नाम से भी जाना जाता है |
4.मध्य काल में कत्यूरी राजाओं के द्वारा यहाँ पर 30 मंदिरों के समूहों का निर्माण करवाया गया था |
इन मंदिरों के समूहों में सबसे उत्कृष्ट मंदिर गूजरदेव का मंदिर है |
5. द्वाराहाट में गढ़वाल शैली में निर्मित प्रसिद्ध बदरीनाथ का मंदिर भी स्थित है|
इसके अलावा द्वाराहाट में लखमपुर मंदिर और महावतार बाबा जी की गुफा भी स्थित है |
6. द्वाराहाट के ऊपर दूनागिरी पर्वत पर दुर्गा देवी का प्राचीन मंदिर है
रानीखेत
1.रानीखेत अल्मोड़ा जनपद में झूलदेवी पर्वत श्रंखलाओं में स्तिथ एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है
2.रानीखेत को पहले ऑकलैंड हिल्स और झूलादेव के नाम से भी जाना जाता था
बाद में कुमाऊं की लक्ष्मीबाई के नाम से प्रसिद्ध जियारानी ने रानीखेत में कुछ दिन प्रवास किया जिसकी वजह से यहाँ का नाम रानीखेत पड़ गया
जिया रानी के बचपन का नाम मौला देवी था, ये हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी )|
-हेनरी रैम्जे को आधुनिक रानीखेत का संस्थापक माना जाता है
– रानीखेत के चौबटिया में फल संरक्षरण एवं शोध केंद्र है ,चौबटिया को ऑर्चिड कंट्री के नाम से जाता है |
वीरणेश्वर (बिनसर)
-बिनसर पहाड़ी के शीर्ष को झंडीधार के नाम से जाना जाता है |
-इसके चारों ओर ओक ,बुरांस ,तथा बांज के घने वन है |
-राजा कल्याणचन्द (1730 -48 ) के द्वारा यहाँ वीरणेश्वर भगवान का मंदिर बनवाया गया था |
-बिनसर में ब्राइट एंड कार्नर ,चीतल मंदिर, डियरपार्क , नंदा देवी मंदिर ,रामकृष्ण मिशन आश्रम ,गोल्ल (गोल्ज्यू ) मंदिर ,गैरा नौला , मिशन स्टेट तथा देवी खाज आदि अनेक प्रसिद्ध स्थान हैं
जागेश्वर
-उत्तराखंड का पांचवा धाम जागेश्वर को जागेश्वर धाम को उत्तराखंड का पांचवा धाम माना जाता है |
-जागेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है ,यह भगवान शिव की तपस्थली है |
-आठवीं शताब्दी में निर्मित महामृत्युंजय मंदिर यहाँ का सबसे प्राचीन मंदिर है, इसी मंदिर में प्रथम शिवलिंग स्थापित है
-जागेश्वर के मंदिर केदारनाथ शैली से निर्मित है
-केंद्रीय पर्यटन विभाग ने 2005 में जागेश्वर को ग्रामीण पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए चयन किया था |
-श्रावण चतुर्दशी कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा और शिवरात्रि पर जागेश्वर में विशेष पूजा आयोजन होता है |
-आदि गुरु शंकराचार्य ने जागेश्वर में शक्ति पीठ की स्थापना की थी |
-जटा गंगा मंदिर समूह के ऊपर स्थित है, जिससे शिव का अभिषेक किया जाता है|
सोमेश्वर
-अल्मोड़ा जिले की कत्यूर घाटी में सोमेश्वर बसा है
-सोमेश्वर में स्थित महादेव मंदिर प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ,इस मंदिर का निर्माण चंद्र वंश के संस्थापक राजा सोमचंद ने 700 ईसवी में करवाया था
-सोमेश्वर के महादेव मंदिर में की गई पूजा काशी विश्वनाथ मंदिर में की गई पूजा के समतुल्य मानी जाती है
-यही मंदिर के प्रांगण में एक जलकुंड है इसके विषय में यह मान्यता है कि पूर्व में यह दूध का कुंड था, परंतु कालांतर में अशुद्ध होने के कारण जल कुंड में बदल गया
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